Indergarh Mataji ! Bijasan Mata Mandir, Indergarh Rajasthan

Indergarh Mataji ! Bijasan Mata Mandir, Indergarh Rajasthan

इन्द्रगढ़ माता जी बीजासणमाता का प्रसिद्ध मन्दिर बूँदी जिले के इन्द्रगढ़ में स्थित है । इन्द्रगढ़ तहसील मुख्यालय होने के साथ ही ऐतिहासिक महत्व का कस्बा है । कोटा दिल्ली रेलमार्ग पर इन्द्रगढ़ स्टेशन है, जहाँ से पश्चिम दिशा में लगभग 6 की.मी. पर यह कस्बा बना है । बस द्वारा केशवराय पाटन से लाखेरी होकर इन्द्रगढ़ पहुँचा जा सकता है
Indergarh Mataji ! Beejasan Mata
Indergarh Mataji ! Beejasan Mata
तिहास के अनुसार बूँदी के शासक राव शत्रुसाल के छोटे भाई राजा इन्द्रसाल ने 1605 ई. में अपने नाम पर इन्द्रगढ़ बनवाया तथा वहाँ पहाड़ी पर एक छोटा किन्तु सुदृढ़ और भव्य किला तथा महल बनवाये । इन्द्रगढ़ राजप्रासाद के भवन प्रमुखतः वहाँ का सुपारी महल और जनाने महल 17वीं 18वीं शताब्दी ई. के अत्यन्त सजीव और कलात्मक भित्तिचित्रों के रूप में कला की अनमोल धरोहर सँजोये हुए हैं । जनाना महल में कृष्ण की बाल्यवस्था के सुन्दर चित्र बने हैं

Bijasan Mata Mandir Indergarh RajasthanIndergarh Mataji

इन्द्रगढ़ में एक विशाल पर्वत शिखर पर बीजासणमाता का मंदिर स्थित है जिसकी बहुत लोकमान्यता है । हाड़ौती अंचल में वे इन्द्रगढ़ देवी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं । सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन के लिए नवविवाहित दम्पत्ति को जात दिलवाने, पुत्रजन्म, बच्चों के चूड़ा करण (उपनयन) संस्कार तथा अन्य मांगलिक अवसरों पर जनसामान्य देवी के दर्शन कर उसका आशीर्वाद तथा मनोवांछित फल पाने देवी के दरबार में उपस्थित होते हैं । वैशाख शुक्ला पूर्णिमा विशेषकर आश्विन तथा चैत्र की नवरात्रा के अवसर पर तो हाड़ौती अंचल तथा राज्य के दूरस्थ इलाकों से लोग इन्द्रगढ़ देवी के दर्शनार्थ बड़ी संख्या में वहाँ आते हैं

औरंगजेब ने भी डरकर अखण्ड ज्योत जलाई माता के इस दरबार में

Indergarh Mataji -: ऊँची और कड़ी पहाड़ी पर स्थित बीजासणमाता के मन्दिर इन्द्रगढ़ तक पहुँचने का मार्ग काफी कठिन और दुर्गम है । सीधी चढ़ाई की लगभग 700-800 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद देवी के मन्दिर में पहुँचा जा सकता है । मन्दिर के भीतर चट्टान से स्वाभाविक रूप से निर्मित देवी की पाषाण प्रतिमा प्रतिष्ठापित है । देवी की यह प्राकृतिक प्रतिमा एक विशेष प्रकार का ओज लिए हुए है तथा उनके दर्शन हेतु यहाँ आने पर एक अलग तरह की आत्मिक शांति का अनुभव होता है । बीजासणमाता मन्दिर के ऊँचे पर्वत शिखर पर स्थित होने क कारण जो बुजुर्ग या शारीरिक रूप से अशक्त लोग मन्दिर की चढ़ाई चढ़ने में असमर्थ है, उनके लिए पहाड़ के नीचे मन्दिर को जाने वाले पर्वतीय मार्ग के दायीं और पर्वतांचल में इन्हीं देवी का एक छोटा मन्दिर बना है, जहाँ पूजा-पाठ कर लोग ऊपर बीजासणमाता के मुख्य मन्दिर तक अपनी शारीरिक विवशता के कारण न पहुँच पाने के अभाव की पूर्ति कर लेते हैं

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देवी मन्दिर को जाने वाले मार्ग पर पहाड़ की तलहटी में देवी के श्रृंगार तथा पूजा-पाठ की सामग्री विक्रय करने की छोटी-बड़ी अनेक दुकानें श्रद्धालुओं का ध्यान सहज ही आकर्षित कर लेती हैं ।
इन्द्रगढ़ में कमलेश्वर महादेव का मन्दिर भी लोक आस्था का केन्द्र है जिसमें शिव-पार्वती, सुर सुन्दरी, षटभुजी गणेश, चतुर्भुज तथा महिषपुच्छ पकड़े महिषमर्दिनी की सजीव पाषाण प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित हैं

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Indergarh Mata ji Mandir old temple was developed as the preferred viewpoint goes, 2000 years earlier in Vikram Samvat 103 by Kamal Nath that Beejasan Mata was an excellent devotee of Goddess Durga. His unflinching commitment to the Siren propitiated the Siren and she showed up before him.
This idol of bijasan mata images (Mother Siren Durga) sittinged on the demon Rakta Beeja. In Markendeya Puran, the great ventures of Siren Durga are narrated which are currently referred to as Shri Gurga Shaptasati. In the 8th phase of Shri Durga Shaptasati we read the Polite shape of Durga when she incomed her intense fight versus the satanic force Indergarh Mataji.

There are hundreds of steps, one has to rise to have a darshan of the Siren. Navratras are performed with excellent enthusiasm and also devotion in the month of Chaitra as well as Ashwin. Currently, big exhibitions are held. Those which wished are satisfied offer artificial eyes to the siren.

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